दीपक प्रकाशन डिक्टेशन
दीपक प्रकाशन अभ्यास -1
सभापति महोदय, सदन में आज शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर बहस हो रही है। मैं लगभग 25 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा हुआ हूं। इस संबंध में मुझे भी आपने अपने विचार प्रकट करने का अवसर प्रदान किया है इसके लिए मैं आपका हृदय से आभार प्रकट करना चाहता हूं। मैं शिक्षा मंत्री महोदय द्वारा प्रकट किए गए विचारों से पूर्णतया सहमत नहीं हूं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से संबंधित तीन मुद्दों पर अपने विचार प्रकट करना चाहूंगा, पहला हमारी शिक्षा प्रणाली में बुनियादी सुधार लाने की आवश्यकता है जिसका रिपोर्ट में भी जिक्र किया गया है ,दूसरा विद्यार्थियों से व्याप्त असंतोष को हटाना तथा तीसरा शिक्षा के लिए विकास कार्यक्रम तैयार करना है। मैं समझता हूं कि कई वर्षों से शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन नहीं किया गया है। देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रणाली बनाई जाती है। आज शिक्षा की प्रणाली काफी समय से पहले बनाई गई थी और उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी देश की उन्नति के लिए आज इन साधनों के आवश्यकता है उसी आधार पर आ शिक्षा प्रणाली बनाई जानी चाहिए मैं अनुभव करता हूं कि हमें अपने शिक्षा के पाठ्यक्रमों में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा तथा हमें अपनी शिक्षण पद्धति में भी परिवर्तन करना होगा।
अध्यक्ष महोदय मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने के लिए कुछ अधिक समय दें ताकि सभी सदस्यों को अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिल सके और इस संबंध में कोई ऐसी नीति बन सके जिससे देश को लाभ मिल सके। मैं सुझाव देना चाहता हूं कि सबसे पहले बुनियादी शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया जाए पाठ्यक्रम में परिवर्तन करने के लिए शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों को लिया जाए इनका क्षेत्र में प्राप्त अनुभवों जब तक अनुभवी व्यक्तियों को शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करने के लिए नहीं सुना जाए का कोई ठोस परिवर्तन शिक्षा में नहीं हो पाएगा हमारे मंत्री महोदय जी ले या प्रांत का दौरा करने जाते हैं तो रेस्ट हाउस में जाकर ठहरते हैं हाथों में जाए तो उनको असली हालत का पता चले लेकिन बेड रेस्ट हाउस में जाकर ठहरते हैं ताकि उनको कहीं लो ना लग जाए इसलिए मैं निवेदन करता हूं कि उनको गांव में जाना चाहिए वहां जाकर उनको किसानों की तकलीफों का एहसास हो।
दीपक प्रकाशन अभ्यास -2
सभापति महोदय भावनाओ और सुंदर कल्पनाओं से सुसज्जित यह एक सुनहरा सपना है जिसके ऊपर आज हम विचार कर रहे हैं इसका पहला चरण समाप्त हुआ है दूसरा समाप्त होने जा रहा है और तीसरे के संबंध में आज यहां पर विवाद हो रहा है। यद्यपि यह एक सपना है जिसको हम साकार करना चाहते हैं परंतु इसके साकार करने के लिए हमें कुछ बातें निश्चित रूप से तय करनी होगी तथा हम इसको साकार करने में सफल हो सकेंगे। इस समय जो सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात है वह है जीवन उपयोगी वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करना। हमारा पहला प्लान आया और जनता ने उसका स्वागत किया, दूसरा प्लान आया उसका भी स्वागत हुआ, हम सोचते थे कि इंप्लानों के कार्यान्वित करने से हमारा जीवन मान बढ़ेगा, देश उन्नत होगा, देश नवनर्माण की ओर बढ़ेगा ,हम तरक्की करेंगे ,परंतु क्या वास्तव में यह बातें हुई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम ने तरक्की की है हम आगे बढ़े हैं, परंतु जब हम निजी जीवन या घरेलू जीवन या अपने आसपास का वातावरण देखते हैं तो क्या बढ़ती हुई महंगाई हमें आश्वस्त कर देती है।
मैं सरकार से कहना चाहता हूं कि इस तीसरी पंचवर्षीय योजना के काल में हमें बहुत सी शक्ति से जमकर मुकाबला करना होगा चीजों के मूल्य हर हालात में रखे जाने चाहिए और यदि हो सके तो इन मूल्यों को हटाने की कोशिश करनी चाहिए आज जो हमारे शहरों में विकारी और उसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारी पढ़ाई का वही पुराना डांग चला आ रहा है आज हमारे नवयुवक पढ़ने के बाद ही सोचते हैं कि हमें कहीं ना कहीं नौकरी करनी है यदि हम को अपनी तीसरी पंचवर्षीय योजना को सफल बनाना है तो इसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि हम अपनी पढ़ाई के तरीके बदले आज हिंदुस्तान की सबसे बड़ी समस्या गरीबी और बेकारी को खत्म करना है यह दोनों बीमारियां हमारे समाज के अंदर कैंसर की बीमारी की तरह से है।
आज तक डॉक्टर नहीं समझ पाए कि कैंसर की बीमारी के लिए कौन सी दवा उपयुक्त है वित्त मंत्री जी इस विद्या के अंतर विशेषज्ञ होते हुए भी इस बीमारी की असल दवा हमें बताने में असमर्थ रहे हैं। यह ठीक है कि बेकारी की समस्या को वह महसूस करते हैं लेकिन हम देखते हैं कि जैसे-जैसे हमारी योजना का काम आगे बढ़ता जाता है वैसे वैसे यह पता लगता है कि व्यापारी भी उस गति से बढ़ती जा रही है। गरीबी का सवाल बेकारी की समस्या से जुड़ा हुआ है अगर लोगों को काम मिलेगा और व्यापारी दूर होगी तो देश से गरीबी भी दूर होती जाएगी
मेरे एक मित्र ने अपने विचार प्रकट करते हुए अभी कहा है कि देश की उन्नति के लिए नागरिकों को क्या करना चाहिए मैं इस बात को बहुत अच्छी तरह से महसूस करता हूं और हमारे देश की जनता भी इसको अच्छी तरह से जानती है कि बिना कष्ट उठाए पूंजी जमा नहीं हो सकती और बिना पूंजी से विकास नहीं हो सकता परंतु सिर्फ इस सदन में खड़े होकर कह देने से पूंजी नहीं बढ़ सकती अगर जनता हर तरह से सहयोग करने को तैयार है परंतु उसे रास्ता आपको दिखना चाहिए आपको स्वयं प्रयास करके जनता के सामने जाना चाहिए तब आप विश्वास रखिए जनता हर तरह से आपकी मदद करने को तैयार होगी।
दीपक प्रकाशन डिक्टेशन
नोट -
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