नीति के दोहे
1- तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुं ओर।
वशीकरण यह मंत्र है ,परीहरी वचन कठोर।।
*इस दोहे में तुलसीदास जी ने मनुष्य को मधुर वचन बोलने का उपदेश दिया है।
अर्थ - नीति के इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि मधुर वचन बोलने से इस संसार में चारों ओर सुख उत्पन्न होता है सभी प्रसन्न होते हैं मीठे वचन बोलने से सभी वश में हो जाते हैं इसलिए मनुष्य को कठोर वचनों को त्यागकर मीठे बोल बोलने चाहिए।
2- मुखिया मुख सो चाहिए ,खान पान को एक।
पालय पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।
* कवि इस दोहे में कहते हैं कि मुखिया को मुख के समान विवेकवान होना चाहिए।
अर्थ -तुलसीदास जी कहते हैं कि घर के प्रमुख को मुख के समान विवेकशील होना चाहिए जिस प्रकार मुख के द्वारा हम भोजन करते हैं और वह शरीर के समस्त अंगों का पालन-पोषण करता है उसी प्रकार परिवार के मुखिया को पूर्ण विवेक एवं इमानदारी से परिवार के सदस्यों का पालन पोषण करना चाहिए।
3- आवत ही हरषै नहीं ,नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइए ,कंचन बरसे मेह।।
* तुलसीदास के विचार से जहां पर पहुंचने पर प्रसन्नता नहीं होती वहां मनुष्य को नहीं जाना चाहिए।
अर्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि इस संसार में जिसके घर जाने पर प्रसन्नता नहीं होती है। नैनो से स्नेह की वर्षा नहीं होती है। बादल सोने की वर्षा करें फिर भी मनुष्य को उस स्थान पर नहीं जाना चाहिए।
4- गोधन, गजधन ,बाजीधन और रतनधन खान।
जब आवत संतोषधन सब धन, धूरि समान।
* कवि ने इस दोहे में कहा है कि संतोष धन सर्वश्रेष्ठ है।
अर्थ - गाय, हाथी ,घोड़े और रत्न रूपी धन सभी धर्मों का खजाना है। किंतु जब मनुष्य को आत्म संतोष रूपी धन की प्राप्ति होती है तो उसके समक्ष सभी धन धूल के समान है।
5- तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहीं न पान।
कहि रहीम पर काज हित ,संपति संचहीं ही सुजान।।
* नीति के इस दोहे में कवि ने परोपकार के महत्व को बताया है।
अर्थ - कवि कहते हैं कि वृक्ष स्वयं अपने फलों को नहीं खाते हैं। सरोवर (तालाब) स्वयं के जल का पानी नहीं करते हैं। रहीम दास जी कहते हैं कि ठीक उसी प्रकार सज्जन दूसरों के हित के लिए अपनी संपत्ति को एकत्रित करते हैं।
6- रहिमन देखि बड़ेन को ,लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी।।
* कवि ने मनुष्य को छोटे लड़की को भी महत्व देने का उपदेश दिया है।
अर्थ - रहीम कवि कहते हैं कि बड़े हो कि को देखकर छोटे का त्याग नहीं करना चाहिए। अर्थात इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह छोटा हो या बड़ा सभी का महत्व है। उदाहरण देते हुए कवि का कथन है कि जहां सुई का काम है वहां तलवार कुछ नहीं कर सकती।
7- जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
*नीति के इस दोहे में कवि ने संगति के महत्व को बताया है।
अर्थ - कवि कहते हैं कि जो मनुष्य उत्तम स्वभाव का होता है बुरी संगति का उस पर कोई असर नहीं पड़ता जिस प्रकार चंदन के वृक्ष पर विषधर (सर्प) लेटे रहते हैं फिर भी विष का प्रभाव चंदन पर नहीं पड़ता है वह सुगंध युक्त ही रहता है।
8- रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इतलैह लोग सब, बाटी न लैह कोय।।
*नीति के इस दोहे में कवि ने दुख को अपने मन में रखने की बात कही है।
अर्थ - रहीम कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन के दुख को मन में ही रखना चाहिए। किसी के सामने प्रकट करने नहीं चाहिए क्योंकि उसे सुनकर लोग हमारी हंसी उड़ाएंगे कोई भी हमारे दुख को बांट नहीं सकता।
9-काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी ,बहुरि करेगा कब।।
*कवि ने मनुष्य को कल का कार्य आज करने का उपदेश दिया है।
अर्थ - कवि कहते हैं कि मनुष्य को कल के कार्य को आज करना चाहिए। आज के कार्य को अभी इसी समय कर लेना चाहिए। एक ही पल में मृत्यु हो जाएगी फिर कार्य को कब करोगे।
10- माला तो कर मैं फिरै ,जीब फिरे मुख माही।
मनवा तो चंहु दसी फिरे, यह तौ सुमिरन नाही।।
* कवि ने धार्मिक ढोंग दिखाने को व्यर्थ बताया है।
अर्थ - कवि कहते हैं कि ईश्वर का स्मरण करने के लिए मनुष्य अपने हाथ में राम नाम की माला फिरता है, मुंह में जीभ से वह कुछ ना कुछ बोलता रहता है, मानव का चंचल मन दसो दिशा में भटकता रहता है किंतु ईश्वर को याद नहीं करता।
11- अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
*कवि ने अधिकता को सब जगह मना बताया है।
अर्थ - कवि कहते हैं कि इस संसार में मनुष्य को न तो अधिक बोलना चाहिए ना ही चुप रहना चाहिए ।अत्यधिक वर्षा से फल नष्ट हो जाते हैं। तेज धूप भी उचित नहीं है।
12- दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारंबार।
तरुवर से पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।
*कवि ने मनुष्य जन्म के महत्व को बताया है।
अर्थ -कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य जन्म अत्यंत दुर्लभ है। यह शरीर उसी प्रकार बार-बार नहीं मिलता जिस प्रकार वृक्ष से पत्ते झड़ने पर फिर से नहीं लगते हैं।
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